
दोस्तों, यह है दंतेवाड़ा, जो छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित एक बेहद ही खूबसूरत जिला है। यह जिला अपने मंदिरों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए पूरे राज्य में काफी मशहूर है। यहां विराजित 52 शक्ति पीठों में से एक मां दंतेश्वरी पूरे बस्तर क्षेत्र की इष्ट देवी कहलाती हैं। माना जाता है कि माता सती का दांत इसी स्थान पर गिरा था, जिसके बाद इस मंदिर को मां दंतेश्वरी का नाम दिया गया और साथ ही इस क्षेत्र को दंतेवाड़ा नाम से जाना जाने लगा।
दंतेवाड़ा: एक परिचय
आज यही दंतेवाड़ा बस्तर संभाग में स्थित छत्तीसगढ़ का सबसे प्रसिद्ध जिला बन चुका है, जो वर्तमान में छह तहसील, चार ब्लॉक, एक विधानसभा क्षेत्र, 144 ग्राम पंचायत, 234 गांव और 11 पुलिस स्टेशनों में बंटा हुआ है। साथ ही यह जिला बीजापुर, सुकमा और बस्तर जिले से अपनी सीमाएं साझा करता है। यहां से कलकल बहती इंद्रावती और शंखिनी डंकिनी नदी इस पूरे क्षेत्र की जीवनदायिनी कहलाती हैं। वर्तमान में दंतेवाड़ा जिला 3410 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है, जो छत्तीसगढ़ के 33 जिलों में तीसरा सबसे छोटा जिला कहलाता है, क्योंकि यहां सिर्फ 3,25,000 लोग ही निवास करते हैं, जिनके द्वारा हल्बी, गोंडी, छत्तीसगढ़ी और हिंदी भाषा बोली जाती है।
यहां की आबादी में 1000 पुरुषों पर 1023 महिलाओं का लिंग अनुपात पाया जाता है और साथ ही यहां 43% आबादी पढ़े लिखे वर्ग में आती है जो धीरे-धीरे ही सही लेकिन शिक्षा की ओर आगे बढ़ रही है। यहां ज्यादातर मारिया, मोरिया, धुरवा, हलबा, भतरा और गोंड आदि कई आदिवासी समूह निवास करते हैं। साथ ही इस जिले को दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा के नाम से भी जाना जाता है, जहां से राज्य का सबसे छोटा नेशनल हाईवे 163A गुजरता है जिसकी लंबाई मात्र 12 किलोमीटर है। यहां की अधिकांश आबादी गांवों में रहकर खेतीबाड़ी और वन संसाधनों से अपना जीवन यापन कर रही है।
खनिज संपदा
यहां दुनिया का सबसे बड़ा लौह अयस्क माइंस बैलाडीला है, जहां दुनिया का सबसे उच्च गुणवत्ता वाला लौह अयस्क पाया जाता है। इसके साथ ही इस जिले में टीन, कोरंडम, यूरेनियम, ग्रेनाइट, ग्रेफाइट, चूना पत्थर और संगमरमर जैसे भंडार भी पाए जाते हैं।
कला, संस्कृति और खानपान
दंतेवाड़ा की कला, संस्कृति, त्यौहार और खानपान पर्यटकों के बीच काफी चर्चित है। यहां का माडिया, गुर्ग, ककड़, दंडार और गेड़ी नृत्य काफी प्रसिद्ध है। साथ ही यहां नवरात्रि पर्व, सावन माह, परस पाल मेला, फागुन मड़ाई और घोट पाल मेला जिले के सबसे प्रसिद्ध मेले और पर्व हैं। दंतेवाड़ा जिले में छत्तीसगढ़िया आदिवासी परंपराओं से भरा देसी पकवान खाने को मिल जाता है। यहां के आदिवासियों द्वारा बनाई हुई चींटी की चटनी पूरे बस्तर क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है। साथ ही यहां के गांवों का बाजार पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है।
पर्यटन स्थल
यह जिला प्राकृतिक सुंदरता से भरा हुआ अपने अंदर कई खूबसूरत पर्यटन स्थलों को समाहित किए हुए है। ऊंची ऊंची पहाड़ियों, घुमावदार रास्ते, असंख्य झरनों, कलकल बहती नदियों, प्राचीन मंदिरों और हरे भरे जंगलों से घिरा दंतेवाड़ा प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग है तो वहीं धार्मिक लोगों के लिए चारों धाम। यहां इंद्रावती नदी के किनारे स्थित बारसूर जो मंदिरों और तालाबों की नगरी के नाम से मशहूर है, यहां आप बतीसा मंदिर, बड़ा गणेश, छोटी दंतेश्वरी माई, मामा भांजा मंदिर, नाग मंदिर एवं आदि के दर्शन कर सकते हैं।
इसके अलावा पूरे बस्तर की इष्ट देवी मां दंतेश्वरी भी इसी दंतेवाड़ा जिला में विराजमान हैं। ढोलकर गणेश की हजार साल पुरानी मूर्ति जो जिले के सबसे सुंदर स्थानों में से एक है जिसे देखने और दर्शन करने दूर-दूर से लोग यहां आते हैं और यह जगह प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। इसके साथ ही आप यहां बादलों के करीब बसे आकाश नगर घूमने जा सकते हैं जो पूरे बस्तर का स्वर्ग कहलाता है। इसके अलावा भी आप यहां फुल पाड़ वाटरफॉल, बचेली, सतधारा जलप्रपात, गुमेर झरना, गामा वाड़ा स्मृति स्तंभ और समल शिव मंदिर में घूमने और दर्शन करने जा सकते हैं।
यात्रा सुविधाएँ
दंतेवाड़ा जिला पहुंचना बेहद आसान है। आप यहां सड़क के रास्ते नेशनल हाईवे 63 और स्टेट हाईवे 5 के सहारे किसी भी शहर से आसानी से पहुंच सकते हैं। अगर आप रेल का सफर करके यहां आना चाहते हैं तो आप दंतेवाड़ा रेलवे स्टेशन उतर सकते हैं जो सभी यात्रियों के लिए उपयुक्त है। इसके साथ ही हवाई मार्ग की बात करें तो दंतेवाड़ा से 90 किलोमीटर दूर जगदलपुर का मां दंतेश्वरी हवाई अड्डा है जो रायपुर, हैदराबाद जैसे बड़े शहरों से जुड़ा है, जिनके माध्यम से आप यहां आसानी से पहुंच सकते हैं।